Thursday, June 23, 2011

आज कहूं मै लख्मीचंद नै

आज कहूं मै लख्मीचंद नै तू कुणसे पाणी उतर गया
तेरे हरियाणा की संस्कृति कै यो कोण घुन चिमड़ गया
उठ दादा तो भी इब तो कीमे ना कीमे बोल
आज फेर पदमावत का कोए अगला किस्सा खोल
मार निगाह तो भी अर देख तेरा हरियाणा
ना रहे देसी खान पान ना रहा देसी बाणा
दूध दही की सुन कै इब तो हाँसी भी ना आती
मखण मलाई कित थे इब तो लासी भी ना पाती

तेरी पिछाण की तूड़ी हो ली तू भी आ कै देख आज
पिसे अर सुआद की लाग री जणे खणे कै खाज
ना कोए मांगे राम रहया ना कोए धनपत मीर
बींध गड़े नगाड़े तासे मार मार लाम्बे तीर
बीन अलगोजे बांसली इब कित तै ढूंढ़ कै लियावा
धोले खान बरगे चेले तेरे कित तै मूंढ कै लियावा
सांझी आहले रागनी गीत बचे आर ना बचे तेरे सांग
ना पुराणा संगीत बचया तोड़ दी सब कयाहे की टांग
चरखयां की टूटी ताणी अर ग़ल के टूटे गीत
सणे डाहले आज पींग टूटी तेरे सामण की रीत

आज हर कोए गडवा बांध कै खुद नै कलाकार कुहावै सै
अर ये कलजुगी कलाकार तो नीरे झोटे बिकावै सै
या फेर किसी दुसरे की गेल्या रागनी कॉम्पिटीशन रचावैगा
अर उस कॉम्पिटीशन मै नीरी लुगाई अर छोरीया नै नचावैगा
कोए फ़िल्मी गाणा तोड़ मरोड़ कै हरयाणवी मै गावैगा
अर उस गंदे से गाणे नै दादा चट पटी रागनी बतावैगा
ना रागनी का मतलब पता अर ना जानै कीमे राग
संस्कृति अर संगीत कै ला गडी तेल गेड गेड आग
काचा मंदा गा कै नै ये कुछ कहणा चाहवै सै
हंस चूगरे सै दाना चुगा आज काग मोती खावै सै

तेरे बिना या संस्कृति आज अपनी पिछाण खोवै सै
या लहू लुहाण होई दादा तेरे छल्या मै बेठी रोवै सै
आज इसका चोगरदे तै अँधेरा गुप सै
इस बाबत तो दादा बड़े बड़ेरे भी चुप सै
यो बखत तनै बुलावै दादा इतना कहणा पुगा जा
बण मसीहा संस्कृति का एक बार दोबारा आजा
आज हर कोए बण लिया सै रूप रंग का चोर
अर मै कित तै लियाऊं टोह कै लख्मीचंद एक होर
लख्मी चंद एक और दोस्तों लख्मी चंद एक होर

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