Friday, February 15, 2013

बस चंद इन्सान कमाये हैं

न गाड़ी ना ज़मीन और ना ही कोई महल बनाये हैं ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

आड़े-तिरछे से अल्फाज़ कुछ लिखे हैं अख़बारों में।
कुछ पड़े हैं भीतर अभी कुछ बंट गए कलाकारों में।
कुछेक सुने पड़ोसियों ने कुछ दफ़न हुए दीवारों में।
कई बस गए फूलों में तो कई चढ़ गए तलवारों में।
कुछ अल्फाजों से मैंने कई बार रोते हुए हंसाये है ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

दुश्मन नहीं बना कोई मेरा दोस्त बने कई रस्ते में ।
गैर जरुर बने कई कोई महंगे में तो कोई सस्ते में ।
सलाम करना सीख गया हूँ जाता क्या है नमस्ते में ।
यारों तुम्हारी सब यादें कैद हैं मेरे फटे-पुराने बस्ते में।
अभी अभी कुछ गीत मेरे गैरों ने भी गुनगुनाये हैं।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

बाप ने  ईमान सिखाया और माँ से सीखा प्यार ।
बहन से लगाव मिला तो हमजोलियों से तकरार।
मुर्शिद जी से गैरत सीखकर मै आ पहुंचा बाज़ार।
प्रेम की मंडी में आकर देखा सिर धड़ का व्यापार।
सूफ़ियत के कुछ नग्मे भी तन्हाई को सुनाये हैं।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।

न गाड़ी ना ज़मीन और ना ही कोई महल बनाये हैं ।
कमाई के नाम पर दोस्तों बस चंद इन्सान कमाये हैं ।।
                                                         - रमेश चहल ।

No comments: