Saturday, June 4, 2016

इसा पाणी सै हरियाणे का

इसा पाणी सै हरियाणे का......(गीत)
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म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का। 
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
कोई भी संकट आया हम जमा नहीं घबराये कदे।
अपने हठ तै गोकुल नै औरंग के गोडे टिकवाए कदे।
देश धर्म और कौम के खातर बंध बंध थे कटवाए कदे।
झज्जर के नवाब तै हामनै नाको चणे चबवाए कदे।
सोलह सौ सतासी का इतिहास पढ़ो दुजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
क्यूकर गजनी जाँदा जाँदा म्हारे धक्के चढ़ग्या था।
तैमूर लंग भी भूल भुलेखे शेरां की मांद मैं बड़ग्या था।
मोहने तै लड़दा अब्दुल्ला कड़ की ताण रिपड़ग्या था।
हरफूल जाट जुलानी का गौ खातर फांसी चढ़ग्या था।
गूंगा पन्ना रुके मारै गोरयां नै लटकाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अपणी पगड़ी खातर हामनै खेली सै खून की होली राये।
भूरा और निघाईया मर्द थे मर्दानी थी बुआ भोली राये।
दुश्मनी भूल कै दोस्त बणगे भरली भाज कै कोली राये ।
पूरा गाम अड्या फौज कै छाती पै खायी गोली राये।
छह महीन्या तक फौज खपाई जिगरा था लिजवाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
अठरह सौ सतावन मैं भी हमनै ए अलख जगाई थी
गोरयां कै खिलाफ खाप नै जेली गंडासी उठाई थी
पापण लाल सड़क हांसी की खून गेल नुहायी थी
नाहर सिंह ऐकले नै दिल्ली की सीम बचायी थी।
हुकमचंद मुनीर बेग कै ना डर था कोये मरजाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
लाम्बे ठाड़े छैल गाभरू देखिये म्हारे जवान रै
खेल हो या फौज हो सब तै नियारी सियान रै।
सीम तै लेकै ओलिंपिक तक म्हारे कदमां के निसान रै।
सवासण भी कोये पाच्छै ना सै हम सब नै सै मान रै।
रमेश चहल किसान रै धरती पै सोना उगाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
म्हारे जैसा इतिहास खोज ल्यो और किते नहीं पाणे का।
धरती जामै वीर गाभरू इसा पाणी सै हरयाणे का।
-रमेश चहल ।

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